ऋग्वेद 1.25.9

 


वेद वातस्य वर्तुनिमुरोक्रुष्वस्य॑ बृहतः

वेदा ये अध्यासते॥९॥

वेदवातस्यवर्तनिम्। उरोः। ऋष्वस्य॑। बृहतः। वेद। ये। अधिऽआसते॥९॥

पदार्थ:-(वेद) जानाति (वातस्य) वायोः (वर्तनिम्) वर्तन्ते यस्मिंस्तं मार्गम् (उरोः) बहुगुणयुक्तस्य (ऋष्वस्य) सर्वत्रागमनशीलस्य। अत्र 'ऋषी गतौ' अस्माद् बाहुलकादोणादिको वन् प्रत्ययः (बृहत:) महतो महाबलविशिष्टस्य (वेद) जानाति (ये) पदार्थाः (अध्यासते) तिष्ठन्ति ते॥९॥ ___

अन्वयः-यो मनुष्य ऋष्वस्योरोव्हतो वातस्य वर्त्तनिं वेद जानीयात्, येऽत्र पदार्था अध्यासते तेषां च वर्त्तनिं वेद, स खलु भूखगोलगुणविज्जायते।।९।___

भावार्थ:-यो मनुष्योऽग्न्यादीनां पदार्थानां मध्ये परिमाणतो गुणतश्च महान् सर्वाधारो वायुर्वर्त्तते तस्य कारणमुत्पत्तिं गमनागमनयोगर्मागं ये तत्र स्थूलसूक्ष्माः पदार्थाः वर्तन्ते, तानपि यथार्थतया विदित्वतेभ्य उपकारं गृहीत्वा ग्राहयित्वा कृतकृत्यो भवेत्, स इह गण्यो विद्वान् भवतीति वेद्याम्॥९॥ ___

पदार्थ:-जो मनुष्य (ऋष्वस्य) सब जगह जाने-आने (उरोः) अत्यन्त गुणवान् (बृहतः) बड़े अत्यन्त बलयुक्त (वातस्य) वायु के (वर्त्तनिम्) मार्ग को (वेद) जानता है (ये) और जो पदार्थ इस में (अध्यासते) इस वायु के आधार से स्थित हैं, उनके भी (वर्त्तनिम्) मार्ग को (वेद) जाने, वह भूगोल वा खगोल के गुणों का जानने वाला होता है।॥९॥

भावार्थ:-जो मनुष्य अग्नि आदि पदार्थों में परिमाण वा गुणों से बड़ा सब मूर्ति वाले पदार्थों का धारण करने वाला वायु है, उसका कारण अर्थात् उत्पत्ति और जाने-आने के मार्ग और जो उसमें स्थूल वा सूक्ष्म पदार्थ ठहरे हैं, उनको भी यथार्थता से जान इनसे अनेक कार्य सिद्ध कर करा के सब प्रयोजनों को सिद्ध कर लेता है, वह विद्वानों में गणनीय विद्वान् होता है।।९।

य एतं जानाति स किं प्राप्नोतीत्युपदिश्यते

जो मनुष्य इस वायु को ठीक-ठीक जानता है, वह किसको प्राप्त होता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।