नई दिल्ली : हिन्दू ज्योतिष के अनुसार 27 नक्षत्रों के स्वामित्व वाले वृक्ष व वनस्पतियां हैं | वृषभ व मिथुन राशि के संधि में मृगशिरा नक्षत्र स्थित है, वृषभ 23 अंश 20 कला से प्रारम्भ होकर अगली राशि मिथुन के 6 अंश 40 कला तक इसका प्रभुत्व है | प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं, इसके दो चरण वृषभ व दो चरण मिथुन राशि में है | इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह मंगल देव हैं और देवत्व सोमदेव को प्राप्त है |
मृगशिरा नक्षत्र का प्रतिनिधि खैर यानी खादिर वृक्ष है | जिनकी जन्मकुंडली में यह नक्षत्र पाप ग्रहों से पीड़ित है या यह नक्षत्र तारा चक्र में विपत, प्रत्यहरि व वध वर्ग में है तो उपाय के रूप में खैर के पौधों का दान रूप में रोपण करना चाहिए, वृक्षारोपण विशेष रूप से तभी करना चाहिए जब चंद्रमा इसी नक्षत्र पर गोचर कर रहा हो अथवा महादशा या अन्तर्दशा या प्रत्यंतरनाथ ग्रह का गोचर इसी नक्षत्र में हो रहा हो | यह ध्यान रखना चाहिए कि गोचरस्थ ग्रह पर अशुभ ग्रह की दृष्टि ना हो, यदि हो तो उस अशुभ ग्रह का ज्योतिषीय उपचार अवश्य करना चाहिए, जिससे नक्षत्र उपचार के शुभ फल प्राप्त हो सके |
खैर (खादिर) का परिचय
आप पान खाते हैं अगर आप पान खाते हैं तो पान में लगाए जाने वाले कत्था के बारे में जरूर जानते होंगे | खैर की शाखाओं तथा छाल को उबालकर ही कत्था निकाला जाता है। इतना ही नहीं खैर या खादिर का प्रयोग धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है। इसके अलावा खादिर या खैर का उपयोग औषधि रूप में किया जाता है |
नव ग्रह समिधा में खादिर या खैर की लकड़ी का उपयोग विशेष रूप से मंगल ग्रह की समिधा के रूप में हवन में प्रयोग किया जाता है | खैर का पेड़ बहुत ही मजबूत होते हैं, इसका तना हड्डियों की तरह कठोर होता है | मजबूती के गुण मंगल ग्रह के समान है |
खैर (खादिर) का पेड़ 9 से 12 मी तक ऊँचा होता है। यह कांटेदार होता है और इसकी उम्र लम्बी होती है। इसकी गांठें बाहर से गहरे मटमैले भूरे रंग की तथा अन्दर से भूरे और लाल रंग की होती हैं | कुछ पुराने पेड़ों के तने के अन्दर की दरारों में रवा या चूर्ण रूप में कभी काले तो कभी सफ़ेद पदार्थ पाए जाते हैं। इसे खैर (खादिर)- सार कहते हैं |
अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग स्थानों पर खैर के आयुर्वेदिक गुणों का वर्णन किया है। भावप्रकाश-निघण्टु में खैर, कदर तथा विट्-खदिर के नाम से इसकी तीन प्रजातियों का वर्णन मिलता है। राजनिघण्टु में तो इन तीन के अतिरिक्त, सोमवल्क व ताम्रंटक नाम से दो अन्य, अर्थात कुल पाँच प्रजातियों का उल्लेख मिलता है।
अनेक भाषाओं में खैर (खादिर) के नाम
- Hindi (acacia catechu in hindi) – खैर, कत्था, खैरबबूल
- English – Black Catechu (ब्लैक कैटेचू), कैटेचु (Catechu), कच ट्री (Cutch tree),
- Sanskrit – खदिर, रक्तसार, गायत्री, दन्तधावन, कण्टकी, बालपत्र, बहुशल्य, यज्ञिय, कदर
- Urdu – खैर (खादिर) (Khair), काठो (Katho)
- Assamese – खेर (Kher), कट (Kat)
- Oriya – खोदिरो (Khodiro), खोईरो (Khoiro)
- Kannada – काचू (Kaachu)
- Gujarati – खेर (Kher), काथो (Katho)
- Telugu (acacia catechu in telugu) – करगालि (Kargali), खदिरमु (Khadiramu)
- Tamil (khadira in tamil) – कदिरम (Kadiram), कोदम (Kodam)
- Bengali – खयेर गाछ (Khayer gaccha), कुथ (Kuth)
- Nepali – खयर (Khayar)
- Marathi – कदेरी (Kaderi), खैर (खादिर) (Khair), लालखैर (खादिर)(Lalkhair)
- Malayalam– कमरंगम (Kamrangam), पुलिन्जी (Pulingi)
- Arabic – काड हिन्दी (Kad Hindi)
- Persian – मस्क दाना (Musk dana)
खैर वृक्ष(khadira tree) गर्म प्रदेशों में मिलता है। यह समस्त भारत के गर्म क्षेत्रों में तथा बाग-बगीचों में मिलता है। यह उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र तथा उड़ीसा के मैदानी एवं पहाड़ी क्षेत्रों में 1200 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है।