कलियुग के सबसे शक्तिशाली देवता हैं काशी के कोतवाल

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नई दिल्ली- ज्योतिष में श्री काल भैरव की पूजा का बड़ा महत्व है | यदि  जन्म कुंडली में  शनि नीच व  शत्रु राशि अथवा मारक भाव का स्वामी हो और राहू- केतु लग्न व लग्नेश और पंचम भाव और पंचमेश ग्रह को पाप दृष्टि से देखते हो तो ऐसे जातक पर तंत्र का नकारात्मक प्रभाव असर करता है | 
    तंत्र साधना में शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण नामक छ: तांत्रिक षट् कर्म होते हैं | इसके अतिरिक्त मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया ये तंत्र के नौ प्रयोग हैं | श्री काल भैरव तंत्र साधना में प्रमुख देवता हैं, जिनके पास काशी के कोतवाल का पद है | भैरवजी को शिव का रुद्र अवतार माना गया है | भगवान शिव की नगरी के कोतवाल रुद्रावतार श्री भैरव की कृपा से अनेक मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं | श्री काल भैरव पूजा का आरंभ सामान्यतया शनिवार और विशेष रूप से बुधवार, गुरूवार और रविवार के दिन किया जाता है | 


Image result for काल भैरव मनॠतॠरकाल भैरव के सिद्ध मन्त्र


यहाँ काल भैरव के बहुत ही प्रभावशाली और शक्तिशाली मन्त्र दे रहे हैं, जिनके विधिवत जाप से कठिन से कठिन कार्य बहुत ही कम समय में पूर्ण हो जाता है |


ॐ कालभैरवाय नम:।'
ॐ भयहरणं च भैरव:।'
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।'
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।'
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्‍।'
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काल भैरव के उपाय


यहाँ काल भैरव को प्रसन्न करने व जन्म कुंडली में पापी ग्रह शनि व राहू-केतु के दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए कुछ ज्योतिषीय उपाय प्रस्तुत हैं- जिससे जातक को प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त होती है | 


1. रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें | यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते के सामने रखें, अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया | अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें |  


2. उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रविवार के  सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6 से 7 के रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं | 


3. रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर भैरव मंदिर को समर्पित करें |  5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी ब्राह्मण लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें | साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे |  


4. प्रति गुरुवार काले कुत्ते को गुड़ व कुछ मीठा पकवान खिलाएं |


5. रात्रि काल में किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा चखने के लिए दान करें | 


6. सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और सड़क के कुत्तों को खिलाएं | 


7.  रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मं‍दिर में गुलाब, चंदन, मोगरा  और गुगल की  11 अगरबत्ती जलाएं | 


8.  पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव मंदिर में अर्पित करें |


9. सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं |


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      भैरव के आठ रूप


तंत्र साधना में भैरव के आठ रूप भी अधिक लोकप्रिय हैं- 
1.असितांग भैरव, 
2. रु-रु भैरव, 
3. चण्ड भैरव, 
4. क्रोधोन्मत्त भैरव, 
5. भयंकर भैरव, 
6. कपाली भैरव, 
7. भीषण भैरव तथा 
8. संहार भैरव 


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      आदि शंकराचार्य ने भी 'प्रपञ्च-सार तंत्र' में अष्ट-भैरवों के नाम लिखे हैं, जबकि  रुद्रायमल तंत्र में 64 भैरवों के नामों का उल्लेख है | आगम रहस्य में दस बटुकों का विवरण है | भैरव का सबसे सौम्य रूप बटुक भैरव और उग्र रूप है काल भैरव | बटुक भैरवजी तुरंत ही प्रसन्न होने वाले दुर्गा के पुत्र हैं | 
    साधना यंत्र : बटुक भैरवजी  का यंत्र लाकर उसे साधना के स्थान पर भैरवजी के चित्र के समीप रखें | दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें | चित्र या यंत्र के सामने हाल, फूल, थोड़े काले उड़द चढ़ाकर उनकी विधिवत पूजा करके लड्डू का भोग लगाएं |


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काल भैरव की साधना


साधना समय : शाम 7 से 10 बजे के बीच अथवा मध्य रात्रि 12 से 1 बजे तक |
साधना चेतावनी : साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें |  सहवास से दूर रहें | वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें | यह साधना किसी गुरु से अच्छे से जानकर ही करें |
1. इस साधना से बटुक भैरवजी प्रसन्न होकर सदा साधक के साथ रहते हैं और उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं |
2. अकाल मृत्यु से बचाते हैं |
3. ऐसे साधक को कभी धन की कमी नहीं रहती और वह सुखपूर्वक वैभवयुक्त जीवन- यापन करता है |
4.  जो साधक बटुक भैरव की निरंतर साधना करता है तो भैरव बींब रूप में उसे दर्शन देकर उसे कुछ सिद्धियां प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से साधक लोगों का भला करता है |
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भय को भगाने वाले काल भैरव का अनुष्ठान 


रुद्रावतार काल भैरव को कलयुग में बहुत शक्तिशाली देवताओं में से एक देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिनकी कृपा से कार्यों में आने वाली विघ्न बाधाएं दूर होतीं हैं, संकट टल जाते हैं, तंत्र मंत्र का निवारण हो जाता है तथा साहस, पराक्रम आदि की प्राप्ति होती है |
           किसी भी प्रकार की पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उस पूजा के लिए निश्चित किये गए मंत्र का एक निश्चित संख्या में जाप करना तथा यह संख्या अधिकतर पूजाओं के लिए 125,000 मंत्र होती है तथा श्री काल भैरव पूजा में भी श्री काल भैरव मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है |
    जाप अनुष्ठान के आरंभ वाले दिन पांच या सात पंडित पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक के साथ भगवान काल भैरव, शिव परिवार तथा मां शक्ति के समक्ष बैठते हैं तथा भगवान काल भैरव, शिव परिवार और मां शक्ति की विधिवत पूजा करते हैं |
    मुख्य पंडित यह संकल्प लेता है कि वह और उसके सहायक पंडित उपस्थित यजमान के लिए श्री काल भैरव मंत्र का 125,000 बार जाप एक निश्चित अवधि में करेंगे तथा इस जाप के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि भैरव जी को अर्पण  करेंगे | 
      इस संकल्प के पश्चात सभी पंडित अपने यजमान अर्थात जातक के लिए श्री काल भैरव मंत्र का जाप करना शुरू कर देते हैं | निश्चित किए गए दिन पर जाप पूरा हो जाने पर इस जाप तथा पूजा के समापन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जो लगभग 2 से 3 घंटे तक चलता है |  सबसे पूर्व भगवान काल भैरव, भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा फल, फूल, दूध, दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, मिठाई, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के साथ की जाती है 
     अंत में एक सूखे नारियल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ विशेष सामग्री भरी जाती है तथा इस नारियल को विशेष मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन कुंड की अग्नि में पूर्ण आहुति के रूप में अर्पित किया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इच्छित फल एक बार फिर मांगे जाते हैं | तत्पश्चात यजमान अर्थात जातक को हवन कुंड की 3, 5 या 7 परिक्रमाएं करने के लिए कहा जाता है तथा यजमान के इन परिक्रमाओं को पूरा करने के पश्चात तथा पूजा करने वाले पंडितों का आशिर्वाद प्राप्त करने के पश्चात यह पूजा संपूर्ण मानी जाती है |  
             श्री काल भैरव पूजा के आरंभ होने से लेकर समाप्त होने तक पूजा करवाने वाले जातक को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस अवधि के भीतर जातक के लिए प्रत्येक प्रकार के मांस, अंडे, मदिरा, धूम्रपान तथा अन्य किसी भी प्रकार के नशे का सेवन निषेध होता है | 
    इसके अतिरिक्त जातक को इस अवधि में किसी भी प्रकार का अनैतिक, अवैध, हिंसात्मक तथा घृणात्मक कार्य आदि भी नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जातक को प्रतिदिन मानसिक संकल्प के माध्यम से श्री काल भैरव पूजा के साथ अपने आप को जोड़ना चाहिए |
               यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि श्री काल भैरव पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी की जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की स्थिति में इस पूजा में जातक की तस्वफोटो का प्रयोग किया जाता है, जिसके साथ साथ जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जाता है |  प्रत्येक प्रकार की क्रिया को करते समय जातक की तस्वीर अर्थात फोटो को उपस्थित रखा जाता है तथा उसे सांकेतिक रूप से जातक ही मान कर क्रियाएं की जातीं हैं |


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