ऋग्वेद 1.12.12

अग्ने शुक्रेणं शोचिषा विश्वाभिर्देवहूतिभिः

डुमं स्तोमं जुषस्व नः॥१२॥२३॥

अग्ने। शुक्रेणी लो॒चिषा। विश्वाभिः। देवहूतिभिः। डमम्। स्तोम॑म्। जुषस्व। नः॥१२॥

पदार्थ:-(अग्ने) प्रकाशमयेश्वर भौतिको वा (शुक्रेण) अनन्तवीर्येण सह भास्वरेण वा (शोचिषा) शुद्धिकारकेण प्रकाशेन (विश्वाभिः) सर्वाभिः (देवहूतिभिः) विदुषां वेदानां वा वाग्भिरावानान्याहूतयस्ताभिः (इमम्) प्रत्यक्षम् (स्तोमम्) स्तुतिसमूहं प्रशंसनीयकलाकौशलं वा (जुषस्व) प्रीत्या सेवस्व, जुषते वा (नः) अस्माकम्।।१२।। अन्वयः-हे अग्ने जगदीश्वर! त्वं कृपया शुक्रेण शोचिषा विश्वाभिर्देवहूतिभिर्न इमं स्तोमं जुषस्वेत्याद्यः॥ अयमग्निविश्वाभिर्देवहूतिभिः सम्यक् साधितः सन् शुक्रेण शोचिषा न इमं स्तोमं जुषत इति द्वितीयः॥१२॥

भावार्थ:-अत्र श्लेषालङ्कारः। दिव्यानां विद्यानां प्रकाशकत्वाद् देवशब्देन वेदा गृह्यन्ते। यदा मनुष्यैः सत्यभावेन वेदवाण्या जगदीश्वरः स्तूयते तदाऽयं प्रीत: संस्तान् विद्यादानेन प्रीणयति। अयं भौतिकोऽग्निरपि विद्यया कलाकौशलेन सम्प्रयोजित इन्धनादिस्थः सन् सर्व क्रियाकाण्डं सेवते॥१२॥

अस्य द्वादशसूक्तार्थस्याग्न्यर्थयोजनैकादशसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्। इदमपि सूक्तं सायणाचार्यादिभियूरोपवासिभिर्विलसनादिभिश्चान्यथैव व्याख्यातम्।।

इत्याद्ये मण्डले द्वादशं सूक्तं त्रयोविशो वर्गश्च समाप्तः॥

पदार्थ:-हे (अग्ने) प्रकाशमय ईश्वर! आप कृपा करके (शुक्रेण) अनन्तवीर्य के साथ (शोचिषा) शुद्धि करने वाले प्रकाश तथा (विश्वाभिः) विद्वान् और वेदों की वाणियों से सब प्राणियों के लिये (नः) हमारे (इमम्) इस प्रत्यक्ष (स्तोमम्) स्तुतिसमूह को (जुषस्व) प्रीति के साथ सेवन कीजिये।।१॥ यह (अग्ने) भौतिक अग्नि (विश्वाभिः) सब (देवहूतभिः) विद्वान् तथा वेदों की वाणियों से अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ (शुक्रेण) अपनी कान्ति वा (शोचिषा) पवित्र करनेवाले प्रकाश से (नः) हमारे (इमम्) इस (स्तोमम्) प्रशंसा करने योग्य कला की कुशलता को (जुषस्व) सेवन करता है।॥२॥१२॥ ___

भावार्थः-इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार हैदिव्यविद्याओं के प्रकाश होने से देव शब्द से वेदों का ग्रहण किया है। जब मनुष्य लोग सत्य प्रेम के साथ वेदवाणी से जगदीश्वर की स्तुति करते हैं, तब वह परमेश्वर उन मनुष्यों को विद्यादान से प्रसन्न करता है। वैसे ही यह भौतिक अग्नि भी विद्या से कलाकुशलता में युक्त किया हुआ इन्धन आदि पदार्थों में ठहर कर सब क्रियाकाण्ड का सेवन करता है।।१२॥

इस बारहवें सूक्त के अर्थ की अग्निशब्द के अर्थ के योग से ग्यारहवें सूक्त के अर्थ से सङ्गति जाननी चाहिये

यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि आर्यावर्तवासी तथा यूरोपदेशवासी विलसन आदि ने विपरीतता से वर्णन किया है

यह बारहवां सूक्त और तेईसवां वर्ग समाप्त हुआ