ऋग्वेद 1.36.18

 नि त्वामग्ने मर्नुर्दधे ज्योति॒र्जनाय शवते।

दीदेय कण्व ऋतात उक्षितो यं नमस्यन्ति कृष्टयः॥१९॥

नि। त्वाम्। अग्ने। मनुः। दधे। ज्योतिः। जाय। शश्वते। दीदे। कण्वे। ऋतऽजातः। उक्षितः। यम्। नमस्यन्ति। कृष्टयः॥ १९॥

पदार्थ:-(नि) नितराम् (त्वाम्) सर्वसुखप्रदम्। अत्र स्वरव्यत्ययादुदात्तत्वम्। सायणाचार्येणेदं भ्रमान्न बुद्धम्। (अग्ने) तेजस्विन् (मनुः) विज्ञानन्यायेन सर्वस्याः प्रजायाः पालक: (दधे) स्वात्मनि धरे (ज्योतिः) स्वयं प्रकाशकत्वेन ज्ञानप्रकाशकम् (जनाय) जीवस्य रक्षणाय (शश्वते) स्वरूपेणानादिने (दीदेथ) प्रकाशयेथ। शबभावः। (कण्वे) मेधाविनि जने (ऋतजातः) ऋतेन सत्याचरणेन जात: प्रसिद्धः (उक्षितः) आनन्दैः सिक्तः (यम्) परमात्मानम् (नमस्यन्ति) पूजयन्ति। नमसः पूजायाम्। (अष्टा०३.१.१९) (कृष्टयः) मनुष्याःकृष्टय इति मनुष्यनामसु पठितम्। (निघ०२.३)।।१९।। __

अन्वयः-हे अग्ने जगदीश्वर ! यं परमात्मानं त्वां शश्वते जनाय कृष्टयो नमस्यन्ति। हे विद्वांसो! यूयं दीदेथ तज्ज्योतिस्स्वरूपं ब्रह्म ऋतजात उक्षितो मनुरहं कण्वे निदधे, तमेव सर्वे मनुष्या उपासीरन्॥१९॥

भावार्थ:- पूज्यस्य परमात्मनः कृपया प्रजारक्षणाय राज्याधिकारे नियोजितैः मनुष्यैः सर्वैः सत्यव्यवहारप्रसिद्ध्या धार्मिका आनन्दितव्या दुष्टाश्च ताड्या बुद्धिमत्सु मनुष्येषु विद्या निधातव्याः॥१९॥

पदार्थ:-हे (अग्ने) परमात्मन्! (यम्) जिस परमात्मा (त्वाम्) आप को (शश्वते) अनादि स्वरूप (जनाय) जीवों की रक्षा के लिये (कृष्टयः) सब विद्वान् मनुष्य (नमस्यन्ति) पूजा और हे विद्वान् लोगो! जिसको आप (दिदेथ) प्रकाशित करते हैं, उस (ज्योतिः) ज्ञान के प्रकाश करने वाले परब्रह्म को (ऋतजातः) सत्याचरण से प्रसिद्ध (उक्षितः) आनन्दित (मनुः) विज्ञानयुक्त मैं (कण्वे) बुद्धिमान् मनुष्य में (निदधे) स्थापित करता हूं, उसकी सब मनुष्य लोग उपासना करें।।१९॥

भावार्थ:-सब के पूजने योग्य परमात्मा के कृपाकटाक्ष से प्रजा की रक्षा के लिये राज्य के अधिकारी सब मनुष्यों को योग्य है कि सत्यव्यवहार की प्रसिद्धि से धर्मात्माओं को आनन्द और दुष्टों को ताड़ना देवें।। १९॥

अथ तं सभेशं प्रति कि किमुपदिशेदित्याह॥

अब उस सभापति के प्रति क्या-क्या उपदेश करे, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया