ऋग्वेद 1.28.7

 आयजी |जसातमा ता ह्युच्चा विजर्भृतः।

हरी इवाधांसि बसता॥७॥

आयजीइत्याऽय॒जी। वाजऽसातमा। ता। हि। उच्चा। विऽजर्भृतः। हरी डुवेति॒ हरीऽइवा अन्धांसि। वसता॥७॥

पदार्थः-(आयजी) समन्ताद् यज्यन्ते सङ्गम्यन्ते पदार्था याभ्यां तौ स्त्रीपुरुषो। अत्र बाहुलकादौणादिकः करणाकारके इ: प्रत्ययः। (वाजसातमा) वाजान् युद्धसमूहान् सनन्ति सम्भज्य विजयन्ते याभ्यां तावतिशायितौ। अत्र सर्वत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशः। (ता) तौ (हि) खलु (उच्चा) उत्कृष्टानि कार्याणि। अत्र शेश्छन्दसि इति शेर्लोपः। (विजर्भूतः) विविधं धरतः (हरीइव) यथाऽश्वौ तथा (अधांसि) अन्नानि। अध इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं०२.७) (बप्सता) बप्सन्तौ। अत्र भसभर्त्सनदीप्योरित्यस्माल्लटः शत्रादेशःघसिभसोर्हलि च। (अष्टा०६.४.१००) अनेनोपधालोपः सुगममन्यत्। भस धातोभन इत्यर्थो नवीनो भक्षण इति प्राचीनोऽर्थः॥७॥ ___

अन्वयः-यावायजी वाजसातमौ स्तस्तौ स्त्रीपुरुषावन्धांसि बप्सन्तौ भक्षयस्तो हरीइव मुसलोलूखलादिभ्य उच्चा उत्कृष्टानि कार्याणि विजर्भृतः॥७॥ __

भावार्थ:-अत्रोपमालङ्कारः। यथा भक्षणकर्त्तारावश्वौ यानादीनि वहतस्तथैव मुसलोलूखले बहूनि विभागकरणादीनि कार्याणि प्रापयत इति॥७॥

पदार्थ:-(आयजी) जो अच्छे प्रकार पदार्थों को प्राप्त होने वाले (वाजसातमा) संग्रामों को जीतते हैं (ता) वे स्त्री पुरुष (अधांसि) अन्नों को (बप्सता) खाते हुए (हरी) घोड़ों के (इव) समान उलूखल आदि से (उच्चा) जो अति उत्तम काम हैं, उनको (विजर्भूतः) अनेक प्रकार से सिद्धकर धारण करते रहें॥७॥

भावार्थ:-इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे खाने वाले घोड़े रथ आदि को वहते हैं, वैसे ही मुसल और ऊखरी से पदार्थों को अलग-अलग करने आदि अनेक कार्यों को सिद्ध करते हैं।॥७॥

पुनस्ते कथंभूते कार्ये इत्युपदिश्यते॥

फिर वे कैसे करने चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।