ऋग्वेद 1.24.9

 अमी य ऋक्षा निहितास उच्चा नक्तं ददृशे कुह चिद्दिवेयुः

अदब्धानि वरुणस्य व्रतानि विचाकेशचन्द्रा नक्तमेति।। १०॥१४॥

अमी इतियेऋक्षाःनिऽहितासः। उच्चाः। नक्तम्। ददृश्री कुह। चित्दिवाईयुः। अदब्धानिवरुणस्य। वृतानि। विऽचार्कशत्। चन्द्रमाः। नक्तम्। एति॥ १०॥ __

_ पदार्थ:-(अमी) दृश्यादृश्याः (ऋक्षाः) सूर्याचन्द्रनक्षत्रादिलोकाः। ऋक्षास्त्रिभिरिति नक्षत्राणाम्। (निरु०३.२०) (निहितासः) ईश्वरेण स्थापिताः। अत्र आज्जसरेसुग् इत्यस्सुक्। (उच्चाः) ऊर्ध्वं स्थिताः (नक्तम्) रात्रौ (ददृशे) दृश्यन्ते। अत्र दृशेलिटि। इरयो रे (अष्टा०६.४.७६) इति सूत्रेणस्य सिद्धिः। (कुह) क्वअत्र वा ह च छन्दसि। (अष्टा०५.३.१३) अनेन किमो हः प्रत्ययः। कुतिहोः(अष्टा०७.२.१०४) इति कुरादेशश्च। (चित्) वितर्के (दिवा) दिवसे (ईयुः) यान्ति। अत्र लडथै लिट्। (अदब्धानि) अहिंसनीयानि (वरुणस्य) जगदीश्वरस्य सूर्यस्य वा (व्रतानि) कर्माणि नियमा वा (विचाकशत्) विशिष्टतया प्रकाशमान: (चन्द्रमाः) चन्द्रलोकः (नक्तम्) रात्रौ (एति) प्रकाशं प्राप्नोति॥१०॥ ____ .

अन्वयः-वयं पृच्छामोऽमी य उच्चा केन निहितास ऋक्षा नक्तं न ददृशे ते दिवा कुह चिदीयुरिति। यानि वरुणस्य परमेश्वरस्य सूर्यस्य वा अदब्धानि व्रतानि यैर्नक्तं विचाकशत् संश्चन्द्रमाःचन्द्रादिनक्षत्रसमूह एति प्रकाशं प्राप्नोति, स रचयिता स च प्रकाशयितास्तीत्युत्तरम्॥१०॥

भावार्थ:-अत्र श्लेषालङ्कारः। अत्र पूर्वार्द्धन प्रश्न उत्तरार्द्धन समाधानं कृतमस्ति, यदा कश्चित् कंचित् प्रति पृच्छेदिमे नक्षत्रलोकाः केन रचिताः केन धारिता रात्रौ दृश्यन्ते दिवसे न दृश्यन्त एते क्व गच्छन्ति तदैतस्यौत्तरमेवं दद्यात्, येनेमे सर्वे लोका वरुणेनेश्वरेण रचिता धारिताः सन्ति। एतेषां मध्ये स्वत: प्रकाशो नास्ति, किन्तु सूर्यस्यैव प्रकाशेन प्रकाशिता भवन्ति, नैवैते क्वापि गच्छन्ति, किन्तु दिवस आत्रियमाणा न दृश्यन्ते, रात्रौ च सूर्यकिरणैः प्रकाशमाना दृश्यन्ते, तान्येतानि धन्यवादाहा॑णि कर्माणि परमेश्वरस्यैव सन्तीति वेद्याम्॥१०॥

इति १४ वर्गः॥

पदार्थ:-हम पूछते हैं कि जो ये (अमी) प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष (ऋक्षाः) सूर्यचन्द्रतारकादि नक्षत्र लोक किसने (उच्चाः) ऊपर को ठहरे हुए (निहितासः) यथायोग्य अपनी-अपनी कक्षा में ठहराये हैं, क्यों ये (नक्तम्) रात्रि में (ददृश्रे) देख पड़ते हैं और (दिवा) दिन में (कुहचित्) कहाँ (ईयुः) जाते हैंइन प्रश्नों के उत्तर-जो (वरुणस्य) परमेश्वर वा सूर्य के (अदब्धानि) हिंसारहित (व्रतानि) नियम वा कर्म हैं कि जिनसे ये ऊपर ठहरे हैं (नक्तम्) रात्रि में (विचाकशत्) अच्छे प्रकार प्रकाशमान होते हैं, ये कहीं नहीं जाते न आते हैं, किन्तु आकाश के बीच में रहते हैं (चन्द्रमाः) चन्द्र आदि लोक (एति) अपनीअपनी दृष्टि के सामने आते और दिन में सूर्य के प्रकाश वा किसी लोक की आड़ से नहीं दीखते हैं, ये प्रश्नों के उत्तर हैं।।१०॥ __

भावार्थ:-इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है तथा इस मन्त्र के पहिले भाग से प्रश्न और पिछले भाग से उनका उत्तर जानना चाहिये कि जब कोई किसी से पूछे कि ये नक्षत्र लोक अर्थात् तारागण किसने बनाये और किसने धारण किये हैं और रात्रि में दीखते तथा दिन में कहाँ जाते हैं, इनके उत्तर ये हैं कि ये सब ईश्वर ने बनाये और धारण किये हैं, इनमें आपही प्रकाश नहीं किन्तु सूर्य के ही प्रकाश से प्रकाशमान होते हैं और ये कहीं नहीं जाते, किन्तु दिन में ढपे हुए दीखते नहीं और रात्रि में सूर्य की किरणों से प्रकाशमान होकर दीखते हैं, ये सब धन्यवाद देने योग्य ईश्वर के ही कर्म हैं, ऐसा सब सज्जनों को जानना चाहिये।।२०॥

पुन: स वरुणः कीदृश इत्युपदिश्यते॥

फिर वह वरुण कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।