ऋग्वेद 1.23.21

 अ॒प्सु मे सोमौ अब्रवीदन्तर्विश्वानि भेषजा.

अ॒ग्निं च विश्वशंभुवमार्पश्च विश्वभैषजीः॥२०॥११॥

अप्सु। मे। सोमः। अबवीत्। अन्तः। विश्वानि। भेषजा। अग्निम्। च। विश्वशंभुवम्। आपः। च। विश्वऽभेषजीः॥२०॥

पदार्थ:-(अप्सु) जलेषु (मे) मह्यम् (सोमः) ओषधिराजश्चन्द्रमाः सोमलताख्यरसो वा (अब्रवीत्) ज्ञापयति। अत्र लडथै लुङन्तर्गतो ण्यर्थः प्रसिद्धीकरणं धात्वर्थश्च। (अन्तः) मध्ये (विश्वानि) सर्वाणि (भेषजा) औषधानि। अत्र शेश्छन्दसि बहुलम् इति लोपः (अग्निम्) विद्युदाख्यम् (च) समुच्चये (विश्वशंभुवम्) यः सर्वस्मै जगते शं सुखं भावयति प्रकटयति तम्। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः क्विप् च इति क्विप्। (आप:) जलानि (च) समुच्चये (विश्वभेषजी:) विश्वाः सर्वा भेषज्य ओषध्यो यासु ताः। अत्र केवलमाम० (अष्टा०४.१.३०) अनेन भेषजशब्दान्डीप् प्रत्ययः॥२०॥

अन्वयः-यथाऽयं सोमो मे मह्यमप्स्वन्तर्विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रवीज्ज्ञापयत्येवं विश्वभेषजीराप: स्वासु सोमाद्यानि विश्वानि भेषजौषधानि विश्वशंभुवमग्निं चाब्रुवन् ज्ञापयन्ति।।२०।।

भावार्थ:-अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सर्वे पदार्थाः स्वगुणैः स्वान् प्रकाशयन्ति तथौषधिगणपुष्टिकारकश्चन्द्रमा ओषधिगणग्राह्याणीति प्रकाशयन्त्यः सर्वोषधिहेतव आपः स्वान्तर्गतं समस्तकल्याणहेतुं स्तनयित्नुं प्रकाशयन्त्यर्थात् जलगतमौषधनिमित्तजलगतमग्निनिमित्तं चास्तीति वेद्यम्॥२०॥

इति प्रथमाष्टके द्वितीयाध्याय एकादशो वर्गः॥२०॥

पदार्थ:-जैसे यह (सोमः) ओषधियों का राजा चन्द्रमा वा सोमलता (मे) मेरे लिये (अप्सु) जलों के (अन्तः) बीच में (विश्वानि) सब (भेषजा) ओषधि (च) तथा (विश्वशंभुवम्) सब जगत् के लिये सुख करने वाले (अग्निम्) बिजुली को (अब्रवीत्) प्रसिद्ध करता है, इसी प्रकार (विश्वभेषजी:)जिनके निमित्त से सब ओषधियाँ होती हैं, वे (आपः) जल भी अपने में उक्त सब ओषधियों और उक्त गुण वाले अग्नि को जानते हैं।॥२०॥

भावार्थ:-इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सब पदार्थ अपने गुणों से अपने-अपने स्वभावों और उनमें ओषधियों की पुष्टि कराने वाला चन्द्रमा और जो ओषधियों में मुख्य सोमलता है, ये दोनों जल के निमित्त और ग्रहण करने योग्य सब ओषधियों का प्रकाश करते हैं, वैसे सब ओषधियों के हेत् जल अपने अन्तर्गत समस्त सुखों का हेतु मेघ का प्रकाश और जो जलों में ओषधियों का निमित्त और जो जल में अग्नि का निमित्त है, ऐसा जानना चाहिये।॥२०॥

इति प्रथमाष्टके द्वितीयाध्याय एकादशो वर्गः॥

पुनस्ताः कीदृशा इत्युपदिश्यते।

फिर वे जल कैसे हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है