ऋग्वेद 1.19.2

 नहि देवो न मो महस्तव क्रतुं परः

मरुद्भिरग्न आ गहि॥२॥

नहि। दे॒वः। न। मर्त्यः। महः। तव। क्रतुम्। परः। मुरुत्ऽभिः। अग्ने। आ। गहि॥२॥

पदार्थः-(नहि) प्रतिषेधार्थे (देवः) विद्वान् (न) निषेधार्थे (मर्त्यः) अविद्वान् मनुष्यः (महः) महिमा (तव) परमात्मनस्तस्याग्नेर्वा (क्रतुम्) कर्म (पर:) प्रकृष्टगुणः (मरुद्भिः) गणैः सह (अग्ने) विज्ञानस्वरूपेश्वर भौतिकस्य वा (आ) समन्तात् (गहि) गच्छ गच्छति वा। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपो लुक्। अनुदात्तोपदेश० इत्यनुनासिकलोपः।।२।। ___

अन्वयः-हे अग्ने! त्वं कृपया मरुद्भिः सहागहि विज्ञातो भव यस्य तव परो महो महिमास्ति तं क्रतुं तव कर्म सम्पूर्णमियत्तया नहि कश्चिद्देवो न च मनुष्यो वेत्तुमर्हतीत्येकः।

यस्य भौतिकाग्नेः परो महो महिमा क्रतुं कर्म प्रज्ञां वा प्रापयति यं न देवो न मयों गुणेयत्तया परिच्छेत्तुमर्हति सोऽग्निर्मरुद्भिः सहागहि समन्तात्प्राप्नोतीति द्वितीयः॥२॥

भावार्थ:-नैव परमेश्वरस्य सर्वोत्तमस्य महिम्नः कर्मणश्चानन्तत्वात् कश्चिदेतस्यान्तं गन्तं शक्नोति, किन्तु यावत्यौ यस्य बुद्धिविडो तावन्तं समाधियोगयुक्तेन प्राणायामेनान्तर्यामिरूपेण स्थितं वेदेषु सृष्टयां भौतिकं च मरुतः स्वस्वरूपगुणा यावन्तः प्रकाशितास्तावन्त एव ते वेदितुमर्हन्ति नाधिकं चेति॥२॥

पदार्थ:-हे (अग्ने) विज्ञानस्वरूप परमेश्वर! आप कृपा करके (मरुद्भिः) प्राणों के साथ (आगहि) प्राप्त हूजिये अर्थात् विदित हूजिये। आप कैसे हैं कि जिनकी (पर:) अत्युत्तम (महः) महिमा है, (तव) आपके (क्रतुम्) कर्मों की पूर्णता से अन्त जानने को (नहि) न कोई (देवः) विद्वान् (न) और न कोई (मर्त्यः) अज्ञानी मनुष्य योग्य है, तथा जो (अग्ने) जिस भौतिक अग्नि का (परः) अति श्रेष्ठ (महः) महिमा है, वह (क्रतुम्) कर्म और बुद्धि को प्राप्त करता है, (तव) उसके सब गुणों को (न देवः) न कोई विद्वान् और (न मर्त्यः) न कोई अज्ञानी मनुष्य जान सकता है, वह अग्नि (मरुद्भिः) प्राणों के साथ (आगहि) सब प्रकार से प्राप्त होता है।॥२॥__

भावार्थ:- परमेश्वर की सर्वोत्तमता से उत्तम महिमा वा कर्म अपार है, इससे उनका पार कोई नहीं पा सकता, किन्तु जितनी जिसकी बुद्धि वा विद्या है, उसके अनुसार समाधियोगयुक्त प्राणायाम से जो कि अन्तर्यामीरूप करके वेद और संसार में परमेश्वर ने अपनी रचना स्वरूप वा गुण वा जितने अग्नि आदि पदार्थ प्रकाशित किये हैं, उतने ही जान सकता है, अधिक नहीं॥२॥

अथाग्निशब्देनैतयोर्गुणा उपदिश्यन्ते।

अगले मन्त्र में अग्निशब्द से ईश्वर और भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश किया है