ऋग्वेद 1.2.2

 वार्य उक्थेभिर्जरन्ते त्वामच्छा जरितारः

सुतसोमा अहुर्विदः॥२॥

वायो इति। उक्थेभिः। जरन्ते। त्वाम्। अच्छ। जरितारः। सुतऽसोमाः। अहुर्विदः॥२॥

पदार्थ:-(वायो) अनन्तबलेश्वर! (उक्थेभिः) स्तोत्रैःअत्र बहुलं छन्दसीति भिसः स्थान ऐसभावः। (जरन्ते) स्तुवन्तिजरा स्तुतिर्जरते: स्तुतिकर्मणः। (निरु०१०.८) जरत इत्यर्चतिकर्मा। (निघं०३.१४) (त्वाम्) भवन्तम् (अच्छ) साक्षात्। निपातस्य च। (अष्टा०६.३.१३६) इति दीर्घः(जरितारः) स्तोतारोऽर्चकाश्च (सुतसोमाः) सुता उत्पादिताः सोमा ओषध्यादिरसा विद्यार्थं यैस्ते (अहर्विदः) य अहर्विज्ञानप्रकाशं विन्दन्ति प्राप्नुवन्ति ते।

भौतिकवायुग्रहणे ख्वयं विशेष:-(वायो) गमनशीलो विमानादिशिल्पविद्यानिमित्तः पवनः (जरितारः) स्तोतारोऽर्थाद् वायुगुणस्तावका भवन्ति यतस्तद्विद्याप्रकाशितगुणफला सती सर्वोपकाराय स्यात्॥२॥

अन्वयः-हे वायो! अहर्विदः सुतसोमा जरितारो विद्वांस उक्थेभिस्त्वामच्छा जरन्ते॥२॥

भावार्थ:-अत्र श्लेषालङ्कारः। अनेन मन्त्रेण वेदादिस्थैः स्तुतिसाधनैः स्तोत्रैः परमार्थव्यवहारविद्यासिद्धये वायुशब्देन परमेश्वर भौतिकयोर्गुणप्रकाशेनोभे विद्ये साक्षात्कर्त्तव्ये इति। अत्रोभयार्थग्रहणे प्रथममन्त्रोक्तानि प्रमाणानि ग्राह्याणि।।२।।

पदार्थ:-(वायो) हे अनन्त बलवान् ईश्वर ! जो-जो (अहर्विदः) विज्ञानरूप प्रकाश को प्राप्त होने (सुतसोमाः) ओषधि आदि पदार्थों के रस को उत्पन्न करने (जरितारः) स्तुति और सत्कार के करनेवाले विद्वान् लोग हैं, वे (उक्थेभिः) वेदोक्त स्तोत्रों से (त्वाम्) आपको (अच्छ) साक्षात् करने के लिये (जरन्ते) स्तुति करते हैं।॥२॥

भावार्थ:-यहां श्लेषालङ्कार हैइस मन्त्र से जो वेदादि शास्त्रों में कहे हुए स्तुतियों के निमित्त स्तोत्र हैं, उनसे व्यवहार और परमार्थ विद्या की सिद्धि के लिये परमेश्वर और भौतिक वायु के गुणों का प्रकाश किया गया है।

इस मन्त्र में वायु शब्द से परमेश्वर और भौतिक वायु के ग्रहण करने के लिये पहिले मन्त्र में कहे हुए प्रमाण ग्रहण करने चाहिये।।२॥

अथ तेषामुक्थानां श्रवणोच्चारणनिमित्तमुपदिश्यते।

पूर्वोक्त स्तोत्रों का जो श्रवण और उच्चारण का निमित्त है, उसका प्रकाश अगले मन्त्र में किया