नेत्रपाणि अवस्था अर्थात नेत्रों पर हाथ रखे हुए अवस्था

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 सूर्य -सूर्य नेत्रपाणि अवस्था में होने से जातक सदा सुखी, ज्ञानी, परोपकारी, पुष्ट शरीर वाला, सुखी और राज्यकुल से विशेष आदर पानेवाला होता है. 



चन्द्र- नेत्रपाणि अवस्था में जातक रोगी, अत्यन्त झूठ बोलने वाला, धूर्त तथा सदा कुकर्म करने वाला होता है. 
मंगल- यदि मंगल नेत्रपाणि अवस्था में लग्न में हो तो उस जातक को दरिद्रता सताती है, यदि उक्त अवस्थागत दूसरे भाव में हो तो वह शहर का मालिक अर्थात धनवान होता है.



बुध-नेत्रपाणि अवस्था में जातक विद्या और बुद्धि से हीन होता है, किसी के साथ सद व्यवहार नहीं करता और मिथ्याभिमानि रहता है. यदि उक्त अवस्थागत बुध पांचवें भाव में हो तो पुत्र और स्त्री का सुख नहीं मिलता, कन्या विशेष पैदा होती है और वह पुरुष राजकुल में पंडित तथा आदरणीय होता है. 



गुरु -नेत्रपाणि अवस्था में जातक रोगी रहता है, बड़प्पन और संपत्ति से हीन होता है, नाच-गान में विशेष प्रेम रखता है, सदा गौरन्ग रहता है और कुलहीन स्त्री से प्रेम रखता है.



शुक्र -नेत्रपाणि अवस्था में यदि शुक्र लग्न, सातवें या दस्वें भाव में हो तो उस मनुष्य को आंखों की हानी हो सकती है, धन का नाश भी होता है. उक्त अवस्था में यदि शुक्र इन भावों से अन्य भावों में हो तो उसको सदा रहने के लिए उत्तम घर मिल जाता है.



शनि-नेत्रपाणि अवस्था में जातक दूसरे के द्रव्य से अति धनि हो जाता है, राजा की प्रसन्नता से अति प्रसन्न होकर, कला - कौशल दिखा कर सदा शुद्ध बुद्धि से काम लेता है.



राहू -नेत्रपाणि अवस्था में जातक के नेत्रों में कष्ट रह्ता है, नीच मनुष्य, सर्प, शत्रु व चोरी का भय रह्ता है और उसका संचित धन नष्ट हो जाता है.



केतू -जन्म समय यदि केतू नेत्रपाणि अवस्था में हो तो जातक को नेत्रों मे रोग होता है, दुष्टजन, सर्प इत्यादि से भय होता है, शत्रु और राजकुल से भी अनेक उपद्रव का भय होता है, धन का नाश हो जाता है और जातक की बुद्धि अत्यन्त चंचल हो जाती है.