जब ज्योतिष का विरोध करने वाले दयानंद ने की मृत्यु की सटीक भविष्यवाणी  


Image result for swami dyanandनई दिल्ली | यह सर्वविदित तथ्य है कि 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में स्वामी दयानंद ने भारत में स्वराज्य आन्दोलन को एक नयी गति प्रदान करी | 1857 की क्रान्ति के उपरांत स्वामी दयानंद ने वेदों के प्रचार में अपना जीवन लगा दिया | स्वामी दयानंद ने मूर्ति पूजा और फलित ज्योतिष का विरोध करते हुए शेष सभी वैदिक कर्मकांडों को स्वीकार किया | यही उनकी विशेषता थी कि विदेशी धर्म इस्लाम और ईसाइयत को भारत से जड़ से उखाड़ने के लिए स्वयं के हिन्दू समाज से परम्परा से चली आ रही कुछ आगम सिद्धांतों व कर्मकांडों का खंडन करना आवश्यक समझा | इस लेख का उद्देश्य मात्र इतना है कि स्वामी दयानंद फलित ज्योतिष के विज्ञान को काल्पनिक अवश्य कहते थे, किन्तु अपनी योग विद्या से उन्होंने सहज ही अनेक बार ऐसी भविष्यवाणी कर दी जिससे प्रारब्ध कर्मों के भोग के आगे मानव जीवन परतंत्र सिद्ध हुआ |


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      बात 1877 की है, जब स्वामी दयानन्द सरस्वती जी सनातन धर्म के प्रचार के लिए लाहौर में प्रवास कर रहे थे |  वहां कॉलेज से कुछ  छात्र उनसे संस्कृत पढ़ने आते थे, उनमें से एक वैष्णव कुल में जन्मा ब्राह्मण छात्र गनपत भी था | गनपत उस समय क़ानून की पढ़ाई कर रहा था और स्वामी दयानन्द के पास वेदों के अध्ययन के लिए नियमित रूप से आता था |


   एक दिन सहज ही स्वामी जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से उसको देखा और उसकी मृत्यु की भविष्यवाणी करते हुए कह दिया कि वह तीस की आयु से अधिक जीवित नहीं रहेगा, इसलिए वह विवाह ना करे | इस घटना की चर्चा  गनपत के बड़े भाई प० तारा चंद के द्वारा गनपत की मृत्यु के बाद सामने आई | प० ताराचंद मुज्जफरगढ़ जिले (तब अखंड भारत था, जो वर्तमान में पाकिस्तान ) में  पुलिस विभाग में क्लर्क थे |
  अपने जीवनकाल में शायद ही स्वामी दयानन्द ने किसी व्यक्ति की मृत्यु सम्बन्धी विषय में पूर्व ही भविष्यकथन किया हो | इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वामी जी ज्योतिष के खगोल व मेदिनी ज्योतिष विद्या का ही समर्थन करते थे, लग्न कुंडली व नवग्रह पुजन इत्यादि को नहीं मानते थे |  स्वामी जी योगी थे, नित्य समाधि का अभ्यास करते थे, और उन्हें योग की कुछ विशेष सिद्धियाँ भी थी | अन्यथा किसी की अकाल मृत्यु के विषय में तो भगवान ही जानते है, मृत्यु योग में ज्योतिष में सूत्र बहुत ही गूढ़ है | इस शापित विद्या में सर्वज्ञ होना किसी भी ब्राह्मण ज्योतिषी के लिए संभव  नहीं है |


      Image result for मॠ तॠ यॠ  ठ ॠ  दॠ वताएक दिन लाहौर में संस्कृत पढ़ने वाले एक ब्राह्मण शिष्य गनपतराय  को देखकर स्वामी जी को कुछ पूर्वाभास हुआ, उन्होंने गनपतराय को एकांत में बुला कर पूछा कि - "तुम्हारा विवाह तो नहीं हुआ ?"
 उत्तर में गनपत ने कहा- "गुरुदेव महाराज जी  विवाह तो अभी नहीं हुआ, परन्तु सगाई हो गई है " | 
स्वामी जी ने कहा, " तुम विवाह मत करना "|
फिर जब गनपत ने कारण पूछा तो स्वामी जी ने उसे स्पष्ट कहा, " तुम्हारी आयु कुछ कम प्रतीत होती है, तीस वर्ष से अधिक का जीवन नहीं है "| 
             स्वामी जी की इस भविष्यवाणी का गनपतराय पर गहरा असर पड़ा | उसने विवाह ना करने का फैसला किया और  अपने साथ पड़ने वाले सहपाठी मित्रों को भी इस बात से अवगत कराया, परन्तु घर पर स्वामी जी द्वारा अल्प मृत्यु की बात नहीं बताई गनपत राय के होने वाले स्वसुर ने विवाह के लिए दबाव बनाया तो पहले उसने साफ़ इनकार कर दिया, परन्तु कुछ समय बाद वह लाहौर से अपने बीमार पिता के पास शाहपुर आया | वहां  काफी समझाने के बाद और कन्या को बदनामी से बचाने के विचार से विवाह कर लिया | 
    गनपत ने मान लिया था कि जीवन थोड़ा सा ही है इसलिए शेष जीवन को आनंद से बिताने के विचार से कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर इधर-उधर व्यर्थ समय व्यतीत करने लगा | जब घर के बुजुर्गों को मृत्यु की भविष्यकथन वाली बात पता चली तो गनपत को समझाया गया कि ज्योतिषी और साधू लोग सच्चे नहीं होते, तुम्हारी कोई अकाल मृत्यु नहीं होगी, इसलिए कोई आजीविका शुरू करो | साथी ही यह भी कहा कि गृहस्थी बिना धनार्जन के नहीं चलती और बेरोजगार मनुष्य की कोई प्रतिष्ठा नहीं होती | गणपतराय ने बात मान ली और सिफारिश करके वो जिला मुल्तान के लोधरा और शुजाआबाद तहसील में नायब तहसीलदार हो गए |
   फिर स्वामी जी की भविष्यवाणी का समय आया, गनपत राय 28 की अवस्था में भयंकर रोगग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हुए | मरने से पूर्व गनपत ने अपने सभी सगे-सम्बन्धियों को बताया कि -"कॉलेज के दिनों में ही स्वामी दयानन्द ने तीस वर्ष के भीतर ही मृत्यु की भविष्यवाणी कह दी, इसलिए मैंने विवाह करने से इनकार किया था |" 
स्वामी दयानन्द जी के पास दिव्य दृष्टि थी, परन्तु वे इस ज्योतिष विद्या के  प्रदर्शन के खेल में ना पड़कर सभी हिन्दुओं को सर्व ग्रह के उपचारार्थ पञ्च महायज्ञ व संस्कारों के प्रचार पर ही जोर देते थे |


    Image result for मॠ तॠ यॠ गनपत की मृत्यु की भविष्यवाणी तो ईश्वरीय प्रेरणा से ही संभव हुई, योग के एक नियम के अनुसार यदि सिद्धि के पीछे भागो के तो सिद्धि प्राप्त होने में सन्देह हो सकता है,   किन्तु सिद्धि के फेर में साधक ईश्वर के साक्षात्कार से चूक जाते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है | हाँ ईश्वर को  लक्ष्य करने वालों को अनेक सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है, इसमें भी तनिक संदेह नहीं करना चाहिए | 


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