ऋग्वेद 1.5.7

 आ त्वां विशन्त्वाशवः सोमास इन्द्र गिर्वणः।

शन्ते सन्तु प्रचैतसे॥७॥

आ। त्वा। विशन्तु। आशवः। सोमा॑सः। इन्द्र। गिर्वणः। शम्। ते। सन्तु। प्रऽचैतसे॥७॥

पदार्थ:-(आ) समन्तात् (त्वा) त्वां जीवम् (विशन्तु) आविष्टा भवन्तु (आशव:) वेगादिगुणसहिताः सर्वक्रियाव्याप्ताः (सोमासः) सर्वे पदार्थाः (इन्द्र) जीव विद्वन् (गिर्वणः) गीर्भिर्वन्यते सम्भज्यते स गिर्वणास्तत्सम्बुद्धौ। गिर्वणा देवो भवति गीर्भिरेनं वनयन्ति। (निरु०६.१४) देवशब्देनात्रप्रशस्तैर्गुणैः स्तोतुमर्हो विद्वान् गृह्यते। गिर्वणस इति पदनामसु पठितम्। (निघ०४.३) (शम्) सुखम्। शमिति सुखनामसु पठितम्। (निघं०३.६) (ते) तुभ्यम् (सन्तु) (प्रचेतसे) प्रकृष्टं चेतो विज्ञानं यस्य तस्मै।।७॥

अन्वयः-हे धार्मिक गिर्वण इन्द्र विद्वन् मनुष्य! आशवः सोमासस्त्वा त्वामाविशन्तु, एवंभूताय प्रचेतसे ते तुभ्यं मदनुग्रहेणेते शंसन्तु सुखकारका भवन्तु॥७॥

भावार्थ:-ईश्वर ईदृशाय जीवायाशीर्वाद ददाति यदा यो विद्वान् परोपकारी भूत्वा मनुष्यो नित्यमुद्योगं करोति तदैव सर्वेभ्यः पदार्थेभ्यः उपकारं सगृह्य सर्वान् प्राणिन: सुखयति, स सर्वं सुखं प्राप्नोति नेतर इति॥७॥ ____

पदार्थ:-हे धार्मिक (गिर्वणः) प्रशंसा के योग्य कर्म करने वाले (इन्द्र) विद्वान् जीव! (आशवः) वेगादि गुण सहित सब क्रियाओं से व्याप्त (सोमासः) सब पदार्थ (त्वा) तुझ को (आविशन्तु) प्राप्त हों, तथा इन पदार्थों को प्राप्त हुए (प्रचेतसे) शुद्ध ज्ञानवाले (ते) तेरे लिये (शम्) ये सब पदार्थ मेरे अनुग्रह से सुख करनेवाले (सन्तु) हों॥७॥

भावार्थ:-ईश्वर ऐसे मनुष्यों को आशीर्वाद देता है कि जो मनुष्य विद्वान् परोपकारी होकर अच्छी प्रकार नित्य उद्योग करके इन सब पदार्थों से उपकार ग्रहण करके सब प्राणियों को सुखयुक्त करता है, वही सदा सुख को प्राप्त होता है, अन्य कोई नहीं॥७॥

एतदर्थमिन्द्रशब्दार्थ उपदिश्यते।

ईश्वर ने उक्त अर्थ ही के प्रकाश करने वाले इन्द्र शब्द का अगले मन्त्र में भी प्रकाश किया है