आषाढ़ गुप्त नवरात्रि साधना का मार्ग 









































आषाढ़ माह नवरात्रि


नवरात्रि के विषय में जितना सामान्य जन-मानस को पता है उसमें चैत्र व शारदीय नवरात्रि ही सबसे प्रमुख माने गए हैं. इन्ही के विषय में कई प्रकार की कथाओं और महत्व का बोध होता है. पर जब हम बात करते हैं अन्य दो ओर नवरात्रि समय की तो उनमें से एक आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होते हैं. आषाढ़ मास में आने वाले नवरात्र को गुप्त रुप से पूजा जाता है. इनका ये विशेष गुप्त रुप सभी के लिए दृष्य न हो पाने के कारण ही ये समय गुप्त नवरात्र विधि के लिए ही जाना जाता है. 


 


आषाढ़ गुप्त नवरात्रि साधना का मार्ग 


 


आषाढ़ मास में आने वाले नवरात्रि में शक्ति स्वरुपा दश महाविद्याओं का पूजन होता है. ये समय मंत्र एवं तंत्र की साधन अके लिए अत्यंत ही प्रभावशालि बताया गया है. यदि हम शाक्त संप्रदाय में इस तथ्य को समझें तो पाते हैं की किस प्रकार शक्ति के द्वारा ही सृष्टि का संचालन संभव हो पाता है. शक्ति ही सृष्टि में प्रक्रति का आधार बनती है. प्रकृति का एक अलग स्वरुप हम इन दस महाविद्याओं में देख सकते हैं.  


 


यह समय साधना के लिए अत्यंत ही महत्वपुर्ण बताया गया है. दस महाविद्याओं का पूजन अभीष्ट कार्यों की सिद्धि में सफलता प्राप्त होता है. जो साधक सिद्धि प्राप्ति की कामना रखता है उनके लिए यह अवसर बहुत खास होता है. इस समय पर शक्ति से सिद्धि प्राप्त करना एक बहुत ही चमत्कारिक और सरल अवसर भी होता है. यह गुप्त नवरात्रि उपासना "तंत्र साधना" के लिए बहुत विशेष मानी गयी है. 


 


कब आते हैं गुप्त नवरात्रि 


साल में देवी शक्ति की उपासना के लिए चार नवरात्रि आती हैं. जिनमें से 2 को उदय नवरात्रि के रुप में सामान्य गृहस्थ लोग मनाते हैं. चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि को उदय नवरात्रि के रुप में समझा जा सकता है.  आषाढ़ और माघ मास में आने वाली को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. 


 


मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि के दौरान अन्य नवरात्रि की तरह ही पूजन करने का विधान है. इस दौरान देवी की प्रत्येक शक्ति का आहवान किया जाता है. प्रत्येक दिन माता के अलग अलग स्वरुप का पूजन होता है. इन दिनों में भी साधक को उपवास का संकल्प लेते हुए पूजा  करनी चाहिए. प्रतिपदा से नवमी तिथि तक प्रतिदिन मां दुर्गा की आराधना करनी चाहिए. 


 


आषाढ़ नवरात्रि में कैसे करें देवी का पूजन 


गुप्त नवरात्रि के दिन प्रतिपदा प्रात:काल समय नवरात्रि का पूजन आरंभ होता है. गुप्त नवरात्रि के दिन दुर्गासप्तशती का पाठ करना चाहिए. दुर्गा के समस्त रुपों का स्मरण करना चाहिए. नवरात्रि के दिन दोनो समय पर पूजा और आरती की जाती है. महाविद्याओं का स्मरण करना चाहिए और देवी के समक्ष घी का अखण्ड दीपक प्रज्जवलित किया जाता है. 


 


गुप्त नवरात्रि की महाविद्या शक्तियों में मुख्य इस प्रकार है देवी काली, देवी तारा, देवी त्रिपुर सुंदरी, माँ भुवनेश्वरी माँ छिन्नमस्तिका, देवी त्रिपुर भैरवी, देवी धुमावती, माँ बगलामुखी, माँ मातंगी और देवी कमला का पूजन मुख्य रुप से इन दिनों पर किया जाता है. 


 


देवी पुराण में भी गुप्त नवरात्रि के विषय में बताया गया है. इस समय पर तांत्रिक किया व काली पूजा और शक्ति साधना का विशेष रुप रहा है. गुप्त नवरात्रि के नियम कड़े होते हैं. इस समय पर शुचिता का पालन सभी नियमों के साथ किया जाना अत्यंत आवश्यक होता है. देवी का आशिर्वाद सभी कष्टों को दूर करता है ओर साधक को सिद्धि की प्राप्त होती है. गुप्त नवरात्रि में साधना गुप्त रुप से ही होती है. इस समय पर पूजा सीमित और गुप्त रुप से ही की जाने पर अधिक फलिभूत होती है.